A painting by one of our patient of mental illness. . .
Poem -
शीर्षक : चलो, एक हो जाते है. . !
बुद्ध नमाज पढ रहे है,
मोहम्मद समाधी में लीन है,
कृष्ण सुलीपर चढे,
येशूने बांसुरी बजाई ।।
अपनी अपनी जंजिरे,
अपने अपने कारागृह,
सभीने तोडे ।।
अपितु यह सब कारागृहोमे,
कैदही न थे ।।
ये कारागृह मनुष्यनेही उनके आस पास बनाये थे,
जो की सभी अदृश्य है ।।
चलो न हमभी ऐसा करते है,
बौद्धो को नमाज पढाते है,
मुसलमानो को समाधी सिखाते है,
हिन्दुओको चर्च ले जाते है,
और ईसाइयो को मंदीर ले जाते है,
सभी सीमा – सरहदो को लांघकर,
आपसमें एक हो जाते है ।।